इस्लाम में गाना, म्यूज़िक सुनना कैसा है ? हमारे इमाम क्या कहते हैं,एक बार ज़रूर पढ़ें..
इमाम जाफ़र सादिक़ رضي الله عنه फ़रमाते हैं कि, " वो घर जहां म्यूज़िक बजता है वो हादसों से महफ़ूज़ नहीं रहता है, दुआएं क़ुबूल नहीं होती हैं, फ़रिश्ते घर में दाख़िल नहीं होते हैं, और वो घर हमेशा परेशानियों में मुब्तेला रहता है। "इमाम मूसा काज़िम رضي الله عنه फ़रमाते हैं कि, " जो इंसान म्यूज़िक सुनता है, आख़िरत में उसको पहले दाएं करवट लिटाया जायेगा और उसके कान में शीशे और लोहे की गरम खौलती हुई सलाख़ पिघला कर ड़ाली जायेगी और फिर इसी तरह बाएं करवट लिटा कर उसके कान में ड़ाली जायेगी। "
इमाम सज्जाद رضي الله عنه फ़रमाते हैं कि, " जब मैं किसी घर से नाच-गाने की आवाज़ सुनता हूं तो मुझको अपने बाबा हुसैन رضي الله عنه के क़ातिल याद आ जाते हैं। "
इमाम अली नक़ी رضي الله عنه फ़रमाते हैं कि, " जो हम अहलेबैत ه से मुहब्बत का दावा करते हैं और हमारे जद के मसाएब पर गिरिया करते हैं, ग़में हुसैन رضي الله عنه बरपा करते हैं, ऐसा हमारा चाहनेवाला अगर नाच-गाने सुनता हो या उन जैसे लोगों को पसन्द करे तो वो शख़्स हम में से नहीं है, वो हमारा मुहिब नहीं हो सकता,बल्कि वो ख़ारिज होगा,मुनाफ़िक़ होगा। "
इमाम-ए-ज़माना رضي الله عنه फ़रमाते हैं कि, " ऐ शियों, तुम्हारा एक गुनाह मेरे ज़हूर में 40 दिन की ताख़ीर का सबब बनता है। "
(किताब - अल-क़ायम, पेज - 250)
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